Pierre Bittar French Impressionist Artist  
 

 

 

अक्तूबर 26, 2011

पेंटिंग नं. 10

जूडाह द्वारा विश्वासघात का पूर्वकथन पुराने विधान में किया गया था जैसा कि निम्नलिखित स्तोत्र से पता चलता है।
स्तोत्र 41:9 - जिस पर मुझे भरोसा था, जिसने मेरी रोटी खाई, उस अभिन्न मित्र ने भी मुझ पर लात चलाई है।

 

यहूदा द्वारा विश्वासघात

Betrayal by Judas

मत्ती 26: 36-48
36 तब यीशु ने अपने चेलों के साथ गतसमनी नामक एक स्थान में आया और अपने चेलों से कहने लगा कि यहीं बैठे रहना, जब तक कि मैं वहां जाकर प्रार्थना करूं।
37 और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को साथ ले गया, और उदास और व्याकुल होने लगा।
38 तब उसने उनसे कहा;" मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरे प्राण निकलना चाहते हैं: तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।"
39 फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुंह के बल गिरा, और यह प्रार्थना करने लगा, कि " हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझसे टल जाए; तौ भी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।
40 फिर चेलों के पास आकर उन्हें सोते पाया, और पतरस से कहा;" क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके?"
41 "जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो: आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।"
42 फिर उसने दूसरी बार जाकर यह प्रार्थना की; "हे मेरे पिता, यदि यह मेरे पीए बिना नहीं हट सकता तो तेरी इच्छा पूरी हो।"
43 तब उसने आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्योंकि उनकी आंखें नींद से भरी थीं।
44 और उन्हें छोड़कर फिर चला गया, और वही बात फिर कह कर, तीसरी बार प्रार्थना की।
45 तब उसने चेलों के पास आकर उनसे कहा; अब सोते रहो, और विश्राम करो: देखो, घड़ी आ पहुंची है, और मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है।
46 "उठो! चलें! देखो, मेरा पकड़वाने वाला निकट आ पहुंचा है!"
47 वह यह कह ही रहा था, कि देखो यहूदा जो बारहों में से एक था, आया, और उसके साथ महायाजकों और लोगों के पुरनियों की ओर से बड़ी भीड़, तलवारें और लाठियां लिए हुए आई।
48 उसके पकड़वाने वाले ने उन्हें यह पता दिया था कि "जिसको मैं चूम लूं वही है; उसे पकड़ लेना।"

यहूदा के विश्वासघात के बारे में बड़े प्रश्न हैं:

प्रश्नः क्या यहूदा अपने कृत्य के लिए जिम्मेदार है?

उत्तर: हाँ। अंतिम रात्रिभोज में (मत्ती 26:24) यीशू ने कहा, “मानव पुत्र तो चला जाता है, जैसा कि उसके विषय में लिखा है; परन्तु धिक्कार उस मनुष्य को, जो मानव पुत्र को पकड़वाता है! उस मनुष्य के लिए कहीं अच्छा यही होता कि वह पैदा ही नहीं हुआ होता।''

प्रश्नः लेकिन उसी छंद के आरंभ में (मत्ती 26:24) यीशू ने यह भी कहा था, “मानव पुत्र तो चला जाता है, जैसा कि उसके विषय में लिखा है।” इससे लगता है कि यह लिखा हुआ था, इसलिए यह तो होना ही था, इससे कोई मतलब नहीं कि क्या होता है।

उत्तरः यह सही है कि परमेश्वर यहूदा के विश्वासघात के बारे में जानता था। यह एक तथ्य है कि परमेश्वर यहूदा के जन्म से पहले से यह जानता था। हमें याद रखना चाहिए कि परमेश्वर समय और स्थान की सीमा से परे है। वह हर एक ब्यौरा जानता है हम में से हर एक भविष्य में क्या करने वाला है। लेकिन हमे परमेश्वर के जानने और परमेश्वर के करने के बीच भ्रम नहीं करना चाहिए। परमेश्वर ने हमें एक मुक्तइच्छा दी जिसे वह कभी नहीं बदलेगा। हम में से हर एक की तरह मुक्तइच्छा यहूदा को भी दी गई थी। यहूदा ने यीशू के साथ विश्वासघात करना चुना, परमेश्वर यह जानता था, जिसका मतलब यह भी है कि यह लिखा हुआ था, और कि परमेश्वर इसे रोक सकता था। लेकिन, इस मामले में उसने मुक्तइच्छा जो उसने हमें दी है के नियम को तोड़ दिया होता और ऐसा वह कभी नहीं करेगा।

प्रश्नः इसका मतलब है कि हमें हमारी नियति पर विश्वास नहीं करना चाहिए?

उत्तरः एक निश्चित सीमा तक हमारी नियति हम पर निर्भर करती है, क्योंकि दुर्घटनाओँ, प्राकृतिक आपदाओं, युद्धों, या भविष्य की किसी अन्य भयावह अनियंत्रित घटनाओं पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है, लेकिन हर बार हम स्वेच्छा से हमारी नियति में योगदान देते हैं। परमेश्वर हमारी नियति के बारे में अवश्य जानता है, लेकिन वह हमारे निर्णयों में कभी हस्तक्षेप नहीं करता। उसने हमें एक मुक्तइच्छा दी है जिसका वह हमेशा सम्मान करेगा।

 

 
  

 हमारे प्रभु की जिंदगी

परिचय 1 - उद्घोषणाएँ 2 - यीशु का जन्म 3 - मिस्र को पलायन
4 - डॉक्टरों के साथ मंदिर में 5 - प्रथम 4 शिष्य 6 - काना में विवाह 7 - यीशू द्वारा विधवा के पुत्र को पुनर्जीवन प्रदान करना
8 - 5000 लोगों को खिलाना 9 - अंतिम रात्रिभोजन 10 - यहूदा द्वारा विश्वासघात 11 - यीशु का निरादर
12 - सलीब पर चढ़ाना और मृत्यु 13 - यीशु का पुनर्जीवन 14 - उत्थान वचन को फैलाना

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