सितंबर 14, 2011 पंटिंग नं. 4 यीशू का बचपन (12)
|
लियुक 2:41 - 52 |
|
41 | उसके माता-पिता प्रति वर्ष फसह के पर्व में यरूशलेम को जाया करते थे। |
42 | जब वह बारह वर्ष का हुआ, तो वे पर्व की रीति के अनुसार यरूशलेम को गए। |
43 | और जब वे उन दिनों को पूरा कर के लौटने लगे, तो वह लड़का यीशु यरूशलेम में रह गया; और यह उसके माता-पिता नहीं जानते थे। |
44 | पर जब नहीं मिला, तो ढूंढ़ते-ढूंढ़ते यरूशलेम को फिर लौट गए। |
45 | वे यह समझ कर, कि वह और यात्रियों के साथ होगा, एक दिन का पड़ाव निकल गए: और उसे अपने कुटुम्बियों और जान-पहचानों में ढूंढ़ने लगे। |
46 | और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उनकी सुनते और उनसे प्रश्न करते हुए पाया। |
47 | और जितने उसकी सुन रहे थे, वे सब उसकी समझ और उसके उत्तरों से चकित थे। |
48 | तब वे उसे देखकर चकित हुए और उसकी माता ने उससे कहा;" हे पुत्र, तूने हमसे क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूंढ़ते थे।" |
49 | उसने उनसे कहा;" तुम मुझे क्यों ढूंढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, किमुझे अपने पिता के भवन में होना आवश्यक है?" |
50 | परन्तु जो बात उसने उनसे कही, उन्होंने उसे नहीं समझा। |
51 | तब वह उन के साथ गया, और नासरत में आया, और उनके वश में रहा; और उसकी माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं। |
52 | और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया। |
हमारे प्रभु की जिंदगी | ||||||
परिचय | 1 - उद्घोषणाएँ | 2 - यीशु का जन्म | 3 - मिस्र को पलायन | |||
4 - डॉक्टरों के साथ मंदिर में | 5 - प्रथम 4 शिष्य | 6 - काना में विवाह | 7 - यीशू द्वारा विधवा के पुत्र को पुनर्जीवन प्रदान करना | |||
8 - 5000 लोगों को खिलाना | 9 - अंतिम रात्रिभोजन | 10 - यहूदा द्वारा विश्वासघात | 11 - यीशु का निरादर | |||
12 - सलीब पर चढ़ाना और मृत्यु | 13 - यीशु का पुनर्जीवन | 14 - उत्थान | वचन को फैलाना | |||
|
||||||
Pierre Bittar की गैलरी |
मुख पृष्ठ |