Pierre Bittar French Impressionist Artist  
 

Pierre Bittar: French Impressionist Artist

 
 

 

क्या हम भगवान की कोशिका हैं?
द्वारा
पियरे बीत्तर
फ़रवरी १८, २०१३

 

एक कोशिका को सबसे छोटी जीवित इकाई के रुप में वर्गीकृत किया गया है व इसी रुप में पारिभाषित किया गया है.आश्चर्यजनक रुप में एक मानव शरीर में लगभग १०० खरब जीवित कोशिका होती हैं.केवल यह एक विचार है कि इस संख्या का अर्थ है कि कल्पना करो कि ईश्वर हर एक सेकेंड में एक पुरुष या स्त्री का निर्माण करता है,तो तीन मिलियन(करोड) वर्षों में कितने मनुष्यों का निर्माण किया जाएगा? तो उसका उतर होगा कम से कम १०० खरब.

दूसरा प्रश्न आपके मस्तिष्क में आ सकता है.क्या हम अपने शरीर में कोशिकाओं की इतनी बडी संख्या को निंयत्रित कर सकते है? एक प्रकार से इसका उतर हाँ है. उदारहण के लिए जब हमें एक मच्छर काटता है तो केवल हम इसे मह्सूस ही नहीं करते हैं, बल्कि हम यह भी जानते हैं कि किस सटीक क्षेत्र में यह हुआ है.

इसी तरह हमे शास्त्रों से यह पता चलता है कि जब हम पाप करते हैं हम ईश्वर को चोट पहुँचाते हैं.वह हमारे पाप से उससे अधिक दुखी होता है जितना हम मच्छर काट्ने से दुखी होते हैं.वह हमारे पाप की प्रकृति को जानता है व उसका नाम भी जिसने यह किया था.दूसरे शब्दों में हम में से प्रत्येक के पास आत्मा व भावनायें हैं जो भगवान से जुडी हैं जिस प्रकार से हमारे शरीर की कोशिकाएँ हमारे मस्तिष्क से जुडी हैं.अपनी मानव योग्यताओं की खोज के द्वारा हम "ईश्वर कौन है?" को बेह्तर रुप में समझ सकते हैं.

इस सादृश्य की एक और पुष्टि है कि मनुष्य ईश्वर कि समानता में ही बना है. उत्पत्ति १: २६ कहते है, "तब भगवान ने कहा था ’हमें मानव को अपनी समानता में बनाने दो’" अंत में वह हमारे पिता हैं और हमारी आत्मा और भावनाएँ उससे जुडी हैं.उत्पत्ति २:७ कहते है "उसने जीवन की साँस ली व उसमें साँस दी और आदमी एक जीवित व्यक्ति बन गया".हम अपने में ईश्वर की साँस को धारण करते हैं इसीलिए हम उसकी जीन को लेते हैं.

एक मच्छर के काट्ने से भी बद्तर क्या हो सकता है जब एक कोशिका कैंसर कोशिका हो जाती है और टयूमर बनाने के द्वारा आसपास की दूसरी कोशिकाओं में बदल देती है.यदि एक मनुष्य पाप करता है,उसके लिए पश्चाताप व क्षमा के लिए पूछता है तो ईश्वर उसे क्षमा कर देंगे. यदि इसके बजाय एक व्यक्ति निरंतर पाप करता रहता है और दूसरों को भी बिना किसी पछ्तावे या पश्चाताप के प्रलोभन या बलपूर्वक उस्के साथ पाप करने को बाध्य करता है तो वह उसकी आत्मा और भावनाओं की अनन्त मृत्यु तक निन्दा करेंगे.

जब महादूत लूसेफ़र का गर्व उसे भगवान से ईर्ष्या करने के लिए धकेलते हैं और चाह्ते हैं कि उसे पसंद किया जाए,भगवान उसे क्षमा कर सकतें हैं लूसिफ़र को पछ्तावा होग और वह क्षमायाचना करेगा.बजाए इसके लूसेफ़र एक तिहाई देवदूतों को प्रभावित करता है कि वह ईश्वर के समान बन सकते हैं यदि वह उसका अनुकरण करें. परिणामस्वरूप लूसेफ़र जो शैतान बन गया था और उसके अनुयायी जो अंधकार अथवा राक्षसों के देवदूत बन गये थे, का पतन हो गया था.वे सब अनन्त मृत्यु के द्वारा निन्दित किए गये थे.

जब एक कोशिका ट्यूमर बन जाती है तो एक सर्जन उसे निकाल देता है और कचरे में फ़ेंक देता है.भगवान इसके विपरीत मनुष्य को अपने से अलग नहीं करना चाहता है और नरक मे नहीं फ़ेंकना चाहता है. वह चाह्ते हैं कि मानव सदैव उसमें रहे जैसा उन्होंने जान १५:४ में लिखा "मुझसे जुडे रहो और मै तुमसे जुडा रहूँगा. कोई भी शाखा अपने आप ही फ़ल नहीं धारण कर सकती है उसे बेल से जुडा रहना चाहिए. इसी प्रकार से तुम फ़ल नहीं धारण कर सकते हो, जब तक तुम मुझसे नहीं जुडे रहोगे. उन्होने जान १५:६ में कहा "यदि कोई मुझसे नहीं जुडा रहता है तो वह उस शाखा के समान है जो सूख गयी है और फ़ेंक दी गयी है. और वह शाखाएँ जो उठा ली गयी है और अग्नि में फ़ेंक दी गयी हैं और जल गयी हैं."

उपरोक्त कथन की नैतिक शिक्षा यह है कि हमें सदैव यह याद रखना चाहिए कि हमें उस सर्व शक्तिमान ईश्वर की संतान होने का सम्मान एवं विशेषधिकार प्राप्त है. हमें विनम्र होना चाहिए व पवित्र बनकर उनके पवित्र नाम का सम्मान करना चाहिए.हमें पाप करने से भी बचना चाहिए,जो उसे कष्ट देता है. ईश्वर जो कुछ भी उसने बनाया है उससे अधिक हम में से प्रत्येक को प्रेम करता है. उसने अपने महान प्रेम को प्रकट किया जब यीशू के रुप में वह पॄथ्वी पर आया और एक मानव के समान ,सभी संभव उपहासों के साथ अपने पवित्र रक्त को एक भेड के बच्चे के समान क्रास पर बहाना स्वीकार किया,हमारे सभी पापों को धोने के लिए. वह हमें पवित्र आत्मा द्वारा जन्में नए एड्म और ईव बनाना चाहता था.ताकि हम उसके राज्य में उसके साथ अनन्त काल तक आनन्द प्राप्त कर सकें.

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संस्करण के बाद :
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4 - डॉक्टरों के साथ मंदिर में 5 - प्रथम 4 शिष्य 6 - काना में विवाह 7 - यीशू द्वारा विधवा के पुत्र को पुनर्जीवन प्रदान करना
8 - 5000 लोगों को खिलाना 9 - अंतिम रात्रिभोजन 10 - यहूदा द्वारा विश्वासघात 11 - यीशु का निरादर
12 - सलीब पर चढ़ाना और मृत्यु 13 - यीशु का पुनर्जीवन 14 - उत्थान वचन को फैलाना

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